- अंधा राजा चौपट नगरी :- मुखिया ही मूर्ख और लापरवाह हो , तो घर उजड़ जाता है।
- अंधेर नगरी चौपट राजा,टके सेर भाजी टके सेर खाजा :- जहॉं मुखिया मूर्ख हो वहॉं अन्याय होता है।
- अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता :- अकेला व्यक्ति कोई बड़ा काम नहीं कर सकता ।
- अक्ल बड़ी या भैंस :- शारीरिक शक्ति मा महत्व कम है बुध्दि का अधिक ।
- अढ़ाई हाथ की ककड़ी , नौ हाथ का बीज :- अनहोनी बात ।
- अपना मकान कोट समान :- अपने घर में जो सुख होता है वह कहीं नहीं।
- अपनी करनी पर उतरनी :- अपना किया काम ही फलदायक होता है।
- अपनी टॉंग उधारिए आपही मरिए लाज :- अपने घर की बात दूसरों से कहने पर बदनामी होती है।
- अपनी पगड़ी अपने हाथ :- अपनी इज्जत अपने हाथ ।
- अपने मुँह मियॉं मिट्टू :- अपनी बड़ाई आप करना ।
- अरहर की टट्टी गुजराती ताला :- मामूली सी चीज की रक्षा के लिए इतना खर्च।
- ऑंख ओट पहाड़ ओट :- ऑंख से ओझल हुए तो समझो बहुत दूर हो गए ।
- आई मौज फकीर की दिया झोपड़ा फूँक :- मौजी और विक्त आदमी किसी चीज की परवाह नहीं करता है।
- ‘आग’ कहते मुँह नहीं जलता :- केवल नाम लेने से कोई हानि लाभ नहीं होता ।
- आग का जला आग ही से अच्छा होता है:- कष्ट देने वाली कष्ट का निवारण भी कर देती है।
- आग बिना धुऑं नहीं :- हर चीज का कारण अवश्य होता है।
- आगे नाथ न पीछे पगहा :- पूर्णत: बंधनरहित
- आज का बनिया कल का सेठ :- काम करते रहने से आदमी बड़ा हो ही जाता है।
- आठ बार नौ त्यौहार :- मौज मस्ती का जीवन
- आदमी पानी का बुलबुला है :- मनुष्य का जीवन नाशवान है ।
- आप मरे जग परलय :- अपने मरने के बाद दुनिया में कुछ हुआ करें ।
- आपा तजे तो हरि को भेजे :- स्वार्थ को छोड़ने से ही परमार्थ सिध्द होता है।
- आ बला गले लग आ बैल मुझे मार :- खाहमखाह मुसीबत मोल लेना ।
- इधर कुऑं उधर खाई :- हर हालत में मुसीबत ।
- इस घर का बाबा आदम ही निराला है :- यहॉं सब कुछ विचित्र है।
- इस हाथ ले उस हाथ दे :- कर्मफल तुरंत मिलता है।
- ईद का चॉंद :- बहुत दिन बाद दिखाई देना ।
- उगले तो अंधा खाए तो कोढ़ी :- दुविधा में पड़ना ।
- उत्त्र जाए कि दक्खिन वही करम के लक्खन :- भाग्य दुर्भाग्य हर जगह साथ देता है।
- उल्टे बॉंस बरेली को :- विपरीत कार्य करना ।
- ऊँट किस करवट बैठता है :- निर्णय किसके पक्ष में होता है।
- ऊँट के गले में बिल्ली :- विपरीत वस्तुओं का मेल ।
- ऊॅंट के मुँह में जीरा :- खाने को बहुत कम मिलना
- एक अंडा वह भी गंदा :- चीज भी थोड़ी और वह भी बेकार है।
- एक आवे के बर्तन :- सब एक जैसे ।
- एक और ग्यारह होते हैं :- एकता में बल है।
- एक मुँह में दो बात :- अपनी बात से पलट जाना ।
- कब्र में पॉंव लटकाए बैठा है :- मरने वाला है।
- कर सेवा खा मेवा :- सेवा करने वाले को अच्छा फल मिलता है।
- काल के हाथ कमान बूढ़ा बचे न जवान काल न छोड़े राजा न छोड़े रंक :- मृत्यु सब को ग्रस लेती है।
- किसी का घर जले कोई तापे :- किसी के दु:ख पर खुश होना ।
- कुछ दाल में काला है :- कुछ न कुछ गड़बड़ अवश्य है ।
- कुत्ता भी दुम हिलाकर बैठता है :- सफाई सब को पसंद होनी चाहिए ।
- कुत्ते को घी नहीं पचता :- नीचे आदमी उच्च पद पाकर इतराने लगता है।
- कुम्हार अपना ही घड़ा सराहता है :- हर कोई अपनी वस्तु की प्रशंसा करता है।
- कौन कहे राजाजी नंगे है :- बड़े लोगो की बुराई नहीं होती ।
- क्या पॉंव में मेंहदी लगी है :- चलते क्यों नहीं ।
- खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है :- देखा देखी काम करना ।
- खाल ओढा़ए सिंह की स्यार सिंह नहीं होय :- ऊपरी रूप बदलने से गुण अवगुण नहीं बदलते ।
- खुदा गंजे को नाखून न दे :- ओछा और बेसमझ आदमी अधिकार पाकर अपनी ही हानि कर बैठता है।
- खूँटे के बल बछड़ा कूदे :- किसी की शह पाकर ही आदमी अकड़ दिखाता है ।
- खेती खसम लेती :- कोई काम अपने हाथ से करने पर ही इीक होता है।
- खेल खिलाड़ी का पैसा मदारी का :- मेहनत किसी की लाभ दूसरे का ।
- गरीबों ने रोजे रखे तो दिन ही बड़े हो गए :- गरीब की किस्मत ही बुरी होती है।
- गॉंठ का पूरा ऑंख का अंधा :- पैसेवाला तो है पर है मूर्ख
- गीदड़ की शामत आए तो गॉंव की ओर भागे :- विपत्ति में बुध्दि काम नहीं करती ।
- गुड खाये गुलगुलों से परहेज :- झूठ और ढोंग रचना ।
- गुड़ गुड़ ही रहे चेले शक्कर हो गए :- छोटे बड़ो से आगे बढ़ जाते हैं।
- गोदी में बैठकर दाढ़ी नोचें :- भला करनेवाले के साथ दुष्टता करना ।
- घड़ी में तोला घड़ी में माशा :- चंचल मन वाला ।
- घर का भेदी लंका ढाए :- घर की फूट का परिणाम बुरा होता है।
- घर खीर तो बाहर खीर :- अपने पास कुछ हो तो बाहर आदर होता है ।
- घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने :- न होन पर भी ढोंग करना ।
- घोड़ो का घर कितनी दूर :- कर्मठ आदमी को अपना काम करने में समय नहीं लगता ।
- चट मँगनी पट ब्याह :- तत्काल कार्य होना ।
- चमार चमडे़ का यार :- स्वार्थी व्यक्ति ।
- चार दिन की चॉंदनी फिर अंधेरी रात :- सुख थोड़े ही दिन का होता है।
- चिराग तले अँधेरा :- पास की चीज दिखाई न पड़ना ।
- चोर के पैर नहीं होते :- दोषी व्यक्ति अपने आप फँसता है।
- चोर चोर मौसेरा भाई :- एक जैसे बदमाशों का मेल हो जाता है।
- चोरी का धन मोरी में :- हराम की कमाई बेकार हो जाती है।
- छुरी खरबुजे पर गिरे या खरबूजा छुरी पर एक ही बात है :- दोनो तरह से हानि ।
- जने जने की लकड़ी एक जने का बोझ :- सब में थेाड़ा थोउ़ा मिले तो काम पूरा हो जाता है।
- जब चने थे तब दॉंत न थे जब दॉंत भये तब चने नहीं :- कभी वस्तु है तो उसका भोग करनेवाला नहीं और कभी भोग करनेवाला है तो वस्तु नहीं ।
- जबरा मारे रोने न दे :- जबरदस्त आदमी का अत्याचार चुपचाप सहना पड़ता है ।
- जहॉं फूल वहॉं कॉंटा :- अच्छाई के साथ बुराई लगी रहती है।
- जाए लाख रहे साख :- धन भले ही चला जाए इज्जत बचानी चाहिए ।
- जिसका काम उसी को साजै :- जो काम जिसका है वही उसे ठीक तरह से कर सकता है।
- जिसकी लाठी उसी की भैंस :- शक्ति संपन्न आदमी अपना काम बना लेता है ।
- जिसके हाथ डोई उसका सब कोई :- धनी आदमी के सब मित्र हैं।
- जैसा मुँह वैसा थप्पड़ :- जो जिसके योग्य हो उसे ही मिलता है।
- ज्यों ज्यों भीजे कामरी त्यों त्यों भारी होय :- जैसे जैसे समय बीतता है जिम्मेदारियॉं बढ़ती जाती है।
- झूठ के पॉंव नहीं होते :- झूठा आदमी एक बात पर पक्का नहीं रह पाता ।
- ठंडा करके खाओ :- धीरज से काम करो ।
- ठोक बजा ले चीज ठोक बजा दे दाम :- अच्छी चीज का अच्छा दाम ।
- ठोकर लगे तब ऑंख खुले :- कुछ खोकर ही अक्ल आती है।
- डायन के दामाद प्यारा :- अपना सब को प्यारा ।
- डूबते को तिनके का सहारा :- विपत्ति में थोड़ी सी सहायता भी उबार देती है ।
- ढोल के भीतर पोल :- केवल दिखावटी शान ।
- तीन में न तेरह में :- कुछ भी महत्व नहीं है ।
- तेरी करनी तेरे आगे मेरी करनी मेरे आगे :- सब को अपने अपने कर्म का फल भोगना पड़ता है।
- तुम्हारे मुँह में घी शक्कर :- तुम्हारी बात सच हो ।
- तुरन्त दान महा कल्यान :- जो करना हो चटपट करें शुभ कार्य में देर कैसी ।
- तेल देखो तेल की धार देखो :- सावधानी और धैर्य से काम लो ।
- तेल न मिठाई चूल्हे धरी कड़ाही :- बिना समान के काम नहीं होता ।
- दबाने पर चीटीं भी चोट करती है :- जिस किसी को दुख दिया जाए वह बदला लेता है ।
- दर्जी की सुई कभी तागे में कभी टाट में :- हर परिस्थिति में सहनशीलता बनाये रखना ।
- दाता दे भंडारी पेट फटे :- संतोश न करना ।
- दाने दाने पर मुहर :- हर व्यक्ति का अपना भाग्य ।
- दूध पिलाकर सॉंप पोसना :- शत्रु का उपकार करना ।
- देह धरे के दंड हैं :- शरीर है तो कष्ट भी रहेगा ।
- दोनों हाथों में लड्डू :- हर तरह लाभ ही लाभ ।
- धन का धन गया मीत की मीत गई :- उधार में पैसा तो जाता ही है मित्रता भी नहीं रहती।
- न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी :- न पूरी होने वाली शर्त।
- नया नौ दिन पुराना सौ दिन :- पुरानी चीजें ज्यादा दिन चलती हैं।
- न सॉंप मरे न लाठी टूटे :- बिना किसी हानि के काम पूरा हो जाए ।
- नाई नाई बाल कितने जिजमान अभी सामने आ जाऍंगे :- प्रश्न का उत्तर अपने आप मिल जाएगा।
- नाक कटी पर घी तो चाटा :- निर्लज्ज होकर कुछ पाना ।
- नाच न जाने ऑंगन टेढ़ा :- अपना दोष बहाना करके टालना ।
- नाम बड़े और दर्शन छोटे :- प्रसिध्दि बहुत होना पर वास्तव में गुण न होना ।
- नारियल में पानी क्या पता खट्टा कि मीठा :- इस बात में संशय है ।
- नेकी और पूछ पूछ :- भलाई करने के लिए पूछना क्या।
- नौ दिन चले अढ़ाई कोस :- बहुत ही मंद गति से कार्य होना ।
- नौ नकद न तेरह उधार :- नकद का काम उधार के काम से अच्छा है।
- पकाई खीर पर हो गया दलिया :- दुर्भाग्य ।
- पगड़ी रख घी चख :- मान सम्मान से हा जीवन का आनंद है ।
- पढ़े तो हैं गुन नहीं :- पढ़ लिखकर भी अनुभवहीन ।
- पागलों के क्या सींग होते हैं :- पागल भी साधरण लोंगों में होते है।
- पानी में रहना और मगर से बैर :- शक्तिशाली व्यक्ति से उलझना ।
- बिल्ली और दूध की रखवाली :- भक्षक रक्षक नहीं हो सकता ।
- बिल्ली के सपने में चूहे :- जिसकी भावना होती है वही सामने रहता है ।
- बिल्ली गई चूहों की बन आई :- दुश्मन या मालिक हटा और इनकी मौज हो गई ।
- भूख लगे तो घर की सझी :- जरूरत पड़ने पर अपनों की याद आती है।
- भूल गए राग रंग भूल गई छकड़ी तीन चीज याद रहीं नून तेल लकड़ी :- गृहस्थी के जंजाल और कोई सुध् बुध नहीं रहती।
- मछली के बच्चे को तैरना कौन सिखाता है :- कुछ गुण जन्मजात होते हैं।
- मन के लड्डूओं से भूख नहीं मिटती :- मन में सोचने मात्र से इच्छा पूरी नहीं होती ।
- मरता क्या न करता :- मजबूरी में आदमी सब कुछ करता है ।
- मॉं का पेट कुम्हार का आवां :- संताने सभी एक सी नहीं होती।
- मुँह चिकना पेट खाली :- केवल ऊपरी दिखावा ।
- मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक :- घूम फिरकर एकमात्र ठिकाना ।
- मोरी की ईंट चौबारे पर :- छोटी चीज का बड़े काम मे लाना ।
- रंग लाती है हिना पत्थर पै घिस जाने के बाद :- दुख झेलते झेलते आदमी का अनुभव और सम्मान बढ़ता है।
- रस्सी जल गई पर ऐंठन न गई :- सर्वनाश हो गया पर घूंड नहीं गया ।
- लातों के भूत बातों से नहीं मानते :- किन्हीं लोंगों से कड़ाई से पेश आना पड़ता है ।
- लाल गुदड़ी में नहीं छिपते :- उत्तम प्रकृति के लोगों का पता चल ही जाता है ।
- ले दही दे दही :- गरज का सौदा ।
- शक्ल चुड़ैल की मिजाज परियों का :- बेकार का नखरा ।
- ससुराल सुख की सार जो रहे दिना दो चार :- रिश्तेदारी में दो चार दिन ठहरना अच्छा होता है।
- सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखाई देता है :- पक्षपात में दूसरे पक्ष की नहीं सूझती ।
- सिर तो नहीं फिरा है :- उलटी सीधी बातें करते हो ।
- हम सॉंप नहीं हवा पीकर जियें :- भरपेट खाना चाहिए ।
- हर मर्ज की दवा :- हर बात का उपाय ।
- हराम की कमाई हराम में गँवाई :- बेईमानी का पैसा बुरे कामों में जग जाता है ।
- हाथ का दिया आड़े आए :- अपना कर्म हा फल देता है ।
- हाथ सुमरनी पेट कतरनी :- ऊपर से अच्छा, मन में बुरा, दिखावटी साधु
- हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा हो :- बिना कुछ खर्च किये लाभ उठाना ।
- होठों निकली कोंठों चढ़ी :- मुँह से निकली बात सब जगह फैल जाती है ।
- होनहार फिरती नहीं होवे बिस्वे बीस :- भाग्य की रेखा नहीं मिटती ।
- होनहार बिरवान के होत चीकने पात :- होनहार बालक के गुण बचपन से दिखाई देने लगते हैं।