- दो या दो से अधिक शब्दों का परस्पर सम्बन्ध बनाने वाले शब्दों अथवा प्रत्ययों का लोप होने पद उन दो या दो से अधिक शब्दों से जो एक स्वतंत्रता शब्द बनता है उस शब्द को समासिक शब्द कहते है और उन दो या दो से अधिक शब्दों का जो संयोग होता है वह समास कहलाता है ।
समास के आवश्यक तत्व
- समास में कम से कम दो पदों को योग होता है ।
- दो या दो से अधिक पद एक पद हो जाते है , ‘एक पद भाव समास’ है ।
- समास में पदों की विभक्ति – प्रत्यय लुप्त हो जाती है।
संधि और समास
- समास और संधि दोनों में एक ही भाव होता है , परन्तु दोनों में होने वाले एक ही भाव अथवा एकीकरण के मध्य कुछ अन्तर होता है –
- समास में दो पदो का योग होता है किन्तु संधि में दो वर्णों का योग होता है ।
- समास में पदों के प्रत्यय समाप्त कर दिए जाते हैं, संधि के लिए दो वर्गो के मेल और विकार की गुंजाइश रहती है। इस प्रकार के मेल और विकार से समास को कोई मतलब नहीं रहता है।
- संधि को तोड़ने को विच्छेद कहते है ।
- जबकि समास का विग्रह किया जाता है , जैसे पीताम्बर में दो पद है – पीत अम्बर । इसका छन्द विच्छेद होगा -पीत अम्बर , जबकि इसका समास विग्रह होगा – पीत है जो अम्बर अथवा पीत है जिसका अम्बर ।
- द्रष्टव्य यह है कि हिन्दी में संधि केवल तत्सम शब्दों में होती है , जबकि समास संस्कृत तत्सम, हिन्दी, उर्दू हर प्रकार के शब्दों या पदों के मध्य हो जाता है , जैसे राजमहल शब्द को लेते हैं। इसतें राज तत्सम शब्द और महल अरबी शब्द के मिलने से सामासिक शब्द राजमहल बना है।
समास के भेद
- अव्ययीभाव समास :-जिन दो शब्दों में समास होता है उनकी प्रधानता अथवा अप्रधानता के आधार पर समास के चार भेद किए जाते हैं। जिस समास में पहला पद प्रधान होता है । पूर्व पद प्रधान तथा समूचा शब्द क्रिया विशेषण अव्यय।
- तत्पुरूष समास:-जिस समास में दूसरा पद प्रधान होता है। अन्तिम पद प्रधान पहला पद विशेषण और दिव्तीय पद विशेष्य।
- दव्न्ध्द समास:- जिसमें दोनों शब्द प्रधान होते हैं ।समस्त पद प्रधान, बीच में और का लोप।
- बहुब्रीहि समास:- जिसमें कोई शब्द प्रधान नहीं। वाला , वाली, है जिसका आदि लगाकर विग्रह किया जाए तथा विशिष्ट नाम अभिप्रेत हो।
- कर्मधारय समास :-जिस समास में विशेष्य विशेषण भाव सूचित हो।
- दिव्गु समास :-जिस कर्मधारय समास कस पूर्व पद संख्यावाचक हो।
- अव्ययी भाव समास
जिस समास में पूर्व पद की प्रधानता हो और सामससिक पद अव्यय हो जाए । जिस समास में पहला पद प्रधान होता है और समूचा शब्द क्रिया विशेषण अव्यय हो जाता है।
प्रति :- प्रतिक्षण , प्रतिदिन , प्रतिध्वनि , प्रतिघात , प्रत्यांग , प्रत्यक्ष , प्रत्येक , प्रत्युपकार , प्रतिशोध , प्रतिकूल , प्रतिलिपि , प्रतिबिम्ब
यथा – यथाशीघ्र , यथासामर्थ्य , यथास्थान , यथाशक्ति , यथार्थ , यथास्थिति , यथायोग्य ,यथाजीवन ,यथासंभव , यथावत , यथोचित , यथासमय ।
हर :- हर एक , हर पल , हरदम , हरक्षण , हलधर , हर घड़ी
बे :- बेकार , बेकाम , बेलाग , बेखटके , बेफायदा , बेचैन , बेरहम , बेलगाम , बेरोजगार , बेपनाह , बेशरम , बेहद , बेपरवाह , बेदम , बेगम
अनु :-अनुसार , अनुराग , अनुपम , अनुशासन , अनुग्रहीत , अनुत्तीर्ण , अनुचित , अनुकूल , अनुर्दर्ध्य , अनुभव , अनुमान , अनुभाग , अनुरूप , अनुभूति
भर :- भरपेट , भरपूर , भरसक , भरपाई , भरकम , भरहाथ , भरघर , भरमार
आ :-आजन्म , आमरण , आमर्त्य , आगमन , आकर्षण , आरम्भ , आक्रमण , आधार , आघत , आरक्षण , आहट , आसक्त , आलोचना , आलेख , आलोकित , आरोपित , आपत्ति , आरोग्य
नि :- निर्भय , निर्विवाद , निरोग , निरर्थक , निवास , निहत्था
- तत्पुरूष समास
- तत्पुरूष समास में दिवतीय पद शब्द प्रधान होता है। प्रथम पद विशेषण और दितीय पद विशेष होता है। बाद वाला पद विशेष्य की प्रधानता रहती है। इसके पहले पद में कर्ताकारक से लेकर अधिकरण कारक तक की विभक्तियों वाले पद अप्रत्यक्ष रूप में रहते हैं।
- कर्मकारक के लोप वाले तत्पुरूष समास
यश प्राप्त | यश का प्राप्त करने वाला |
विरोधजनक | विरोध को जन्म देने वाला |
चिड़ीमार | चिडि़या को मारने वाला |
ध्यानातीत | ध्यान को अतीत करके |
मुँहतोड़ | मुँह को तोड़ने वाला |
पाकेटमार | पाकेट को मारने वाला |
स्वर्ग प्राप्त | स्वर्ग को प्राप्त |
गगन चुम्बी | गगन को चूमने वाला |
रोजगारोन्मुख | रोजगार को उन्मुख |
मरणातुर | मरने को आतुर |
कृतघन | उपकार को न मानने वाला |
जितेन्द्रिय | इन्द्रियों को जीतने वाला |
कृतज्ञ | उपकार को मानने वाला |
आदर्शोन्मुख | आदर्श का उन्मुख |
जीभर | जी को भरने वाला |
विधाधर | विधा को धारण करने वाला |
व्यक्तिगत | व्यक्ति को गत् गया हुआ |
कठखोदवा | काठ को खोदने वाला |
- करणकारक के लोप वाले तत्पुरूष समास
रेखांकित | रेखा के दवारा अंकित |
वचनबध्द | वचन से बध्द |
महिमामंडित | महिमा से मंडित |
दोषपूर्ण | दोष से पूर्ण |
रसाभरा | रस से भरा |
कष्टसाध्य | कष्ट से साध्य |
शोकग्रस्त | शोक से ग्रस्त |
शोकाकुल | शोक से आकुल |
भयभीत | भय से भीत |
कामचोर | काम से चोर |
रोग पीडि़त | रोग से पीडि़त |
रोगग्रस्त | रोग से ग्रस्त |
भावाभिभूत | भाव से अभीभुत |
श्रमजीवी | श्रम से जीने वाला |
मदान्ध | मद से अन्ध |
अकाल पीडि़त | अकाल से पीडि़त |
दस्तकारी | हाथ से किया गया कार्य |
वाग्युध्द | वाक् भाषा से युध्द |
मनगढ़त | मन से गढ़ा हुआ |
रत्नजडि़त | रत्न से जडि़त |
अभावग्रस्त | अभाव से ग्रस्त |
तुलसीकृत | तुलसी दवारा कृत |
- सम्प्रदान से बनने वाले तत्पुरूष समास
यज्ञशाला | यज्ञ करने के लिए शाला |
हवनसामग्री | हवन के लिए सामग्री |
रसोईघर | रसोई के लिए घर |
रंगमंच | रंग के लिए मंच |
रणभूमि | रण के लिए भूमि |
यज्ञवेदी | यज्ञ के लिए वेदी |
कृषिभवन | कृषि संबंधित कार्य के लिए भवन |
ग्रहस्थाश्रम | ग्रहस्थों के लिए आश्रम |
न्यायालय | न्याय के लिए आलय |
सभाभवन | सभा के लिए भवन |
स्नानघर | स्नान के लिए घर |
रोकड़बही | रोड़ के लिए बही |
समाचारपत्र | समाचार के लिए पत्र |
गोशाला | गो के लिए शाला |
लोककितकारी | लोक के लिए हितकारी |
- अपादान के लोप वाले तत्पुरूष समास
बलहीन | बल से हीन |
हृदयहीन | भाव से हीन |
पापमुक्त | पाप से मुक्त |
ऋणमुक्त | ऋण से मुक्त |
नेत्रहीन | नेत्र से हीन |
धनहीन | धन से हीन |
दूरागत | दूर से आगत |
पदभ्रष्ट | पद से भ्रष्ट |
कर्मविमुख | कर्म से विमुख |
कर्मभिन्न | कर्म से भिन्न |
मायारिप्त | माया से रिप्त |
- संबंध कारक लोप वाले तत्पुरूष समास
सूर्योदय | सूर्य का उदय |
भूकम्प | भू का कंप |
पत्रोत्तर | पत्र का उत्तर |
ऋषिकन्या | ऋषि की कन्या |
लखपति | लाख रूपये का पति |
प्राणदान | प्राणों का दान |
जमीदार | जमीन का दार मालिक |
सभापति | सभा का पति |
श्रमदान | श्रम का दान |
अन्नदान | अन्न का दान |
राजभवन | राजा का भवन |
नगरसेठ | नगर का सेठ |
वीरकन्या | वीर की कन्या |
मन:स्थिति | मन की स्थिति |
- अधिकरण कारक के लोप वाले तत्पुरूष समास
आत्मकेन्द्रित | आत्म पर केन्द्रित |
शरणागत | शरण में आगत |
कलाप्रवीण | कला में प्रवीण |
आत्मनिर्भर | आत्म में निर्भर |
क्षत्रियाधम | क्षत्रियों में अधम |
हरफनमौला | हरफन में मौला |
सिरदर्द | सिर में दर्द |
मुनिश्रेष्ठ | मुनियों में श्रेष्ठ |
देवाश्रित | देव पर आश्रित |
युध्दतत्पर | युध्द में तत्पर |
पुरूषसिंह़़ | पुरूषों में सिंह |
ईश्वरोहीन | ईश्वर पर आधीन |
आपबीती | अपने पर बीती |
ग्रामवास | ग्राम में वास |
- दव्न्ध्द समास
- जिस समास में सब पद प्रधान होते है। दव्न्ध्द समास का विग्रह शब्दों के मध्य और शब्द लगाकर किया जाता है अथवा या कहिए कि दव्न्ध्द सामासिक पद के मध्य और शब्द का लोप रहता है। दव्न्ध्द समास में दोनों पदों के मध्य योजक चिन्ह का भी प्रयोग होता है।
- उदाहरण
माता- पिता | थोड़ा-बहुत | नदी – नाला |
पूरब – पश्चिम | अच्छा – बुरा | लाभ – हानि |
दिन – रात | उत्तर – दक्षिण | चाय – पानी |
लीपा – पोती | हुक्का – पानी | काम – काज |
भूल – चूक | बाप – दादा | खाना – पीना |
घर – दवार | हाथ – पांव | भला – बुरा |
पाला – पोसा | बहू – बेटी | आगा – पीछा |
नोट :- परन्तु जब समान अक्षर की आवृत्ति होती है तो वह अव्ययी भाव समास कहलाते हैं। बार -बार , रोज-रोज , कभी – कभी , गली – गली , दवार -दवार , घर-घर , एक-एक ।
- बहुब्रीहि समास
- जिस समास का कोई खण्ड प्रधान न हो।इस समास कस विग्रह करते समय वाला , वाली है, जिसका है , जिसकी है , शब्द आते हैं।
- उदाहरण
लम्बोदर | लम्बा है उदर जिसका अर्थात गणेश |
महादेव | महान है जो देव अर्थात शिव |
निशाचर | निशा में विचरण करने वाला अर्थात राक्षस |
त्रिलोचक | तीन नेत्रों वाला अर्थात शिव |
अन्शुमालि | अंशुओं की माला समर्य की किरणें हो जिसकी अर्थात सूर्य |
कमलनयन | कमल जैसे नयन वाले अर्थात विष्णु |
तिरंगा | तीन रंग का अर्थात राष्ट्र ध्वज |
गिरिधर | गिरि पहाड़ को धारण करने वाला अर्थात कृष्ण |
शैलनंदिनी | वह जो शैल हिमालय की नंदनी पुत्री है अर्थात पावित्री |
त्रिपिटक | तीन पिटकों रचना संग्रह का संग्रह बौध्द धर्म के ग्रंथ |
वज्रपाणि | वह जिसके पाणि हाथ में व्रज है अर्थात इन्द्र |
घनश्याम | वह जो श्याम वर्ण के घन बादल के समान है अर्थात कृष्ण |
चन्द्रमौलि | वह जिनके मौलि मस्तक पर चन्द्र है अर्थात शिव |
- कर्मधारय समास
- जिस समस्त पद का उत्तर पद प्रधान हो तथा दोनों के बीच उपमेय , उपमान एवं विशेषण विशेष का संबंध हो कर्मधारय समास कहलाता है।
- उपमेय :- जिसकी तुलना किसी अन्य वस्तु से की जाती है।
- उपमान :- उपमेय को जिय वस्तु की उपमा दी जाती है वह उपमान कहलाती है।
- चित्र बनाना है
- उदाहरण
महाकवि | महान कवि |
पीताम्बर | पीत अम्बर |
नवयुवक | नव युवक |
सद्भावना | सत् भावना |
नीलोप्ल | नील उत्पल |
रक्तलोचन | रक्त लाल है जो लोचन है |
महापुरूष | महान है जो पुरूष |
चूड़ामणि | चूर्ण सिर में पहनी जाती है जो मणि |
सदाश्य | सत् है जिसका आशय |
वीरबाला | वीर है जो बाला |
काली मिर्च | काली है जो मिर्च |
सद्धर्म | सत् है जो धर्म |
बहुसंख्यक | बहुत है संख्या जिनकी |
मन्दबुध्दि | मन्द है जिसकी बृध्दि |
उड़नतश्तरी | उड़ती है जो तश्तरी |
नवागंतुक | नव है जो आगंतुक |
कालास्याह | जो काला है स्याह |
- दिव्गु समास
- जिस समस्तमस्त पद का उत्तर पद प्रधान है एवं पूर्व पद संख्यावाचक विशेषण है वहां दिव्गु समास होता है।
- उदाहरण :-
चतुरानन | चार सिर वाला |
दोपहर | दूसरा पहर |
सप्तर्षि | सत ऋषियों का समूह |
शताब्दी | सौ वर्षों का समय |
नवग्रह | नौ ग्रहों का समूह |
अष्टाध्यायी | आठ ग्रंथो का समाहार |
पंचमणि | पांच मणियों का समाहार |
नवरत्न | नौ रत्नों का समूह |
नवरात्रि | नौ रातों का समूह |
त्रिफला | तीन फलों का समूह |
सप्ताह | सात दिनों का समूह |
दशक | दस वर्षों का समूह |
दोराहा | दो राहों का समूह |
इकलौता | एक ही है जो |
त्रिकाल | तीनों कालों का समाहार |
चवन्नी | चार आनों का समूह |
एकांकी | एक अंक का नाटक |
चौकड़ी | चार कडि़यों वाला |
पंचवटी | पांच बरगद वृक्षों का समूह |
दशानन | दस सिर वाला |
चौराहा | चार राहों वाला |
त्रिमूर्ति | तीन मूर्तियों का समूह |
दोलड़ा | दो है जिसकी लड़ |
चतुर्युग | चार युग का समूह |
एकतरफा | एक ही तरफ है जो |
तिमाही | तीन माह के बाद आने वाला |
छमाही | छ माह के बाद आने वाला |
महत्वपूर्ण प्रश्न
- राजपुत्र :- तत्पुरूष समास
- दिन-रात :- कर्मधारय समास
- जन्माधं :- तत्पुरूष समास
- प्रतिमान :-कर्मधारय समास
- पुरूषोत्तम :- तत्पुरूष समास
- यथासाध्य :- दव्न्ध्द समास
- वीरपुरूष :- तत्पुरूष समास
- पीताम्बर पीत है वस्त्र जिसके शब्द में कौन सा समास है :- बहुब्रीहि समास
- कमलनयन :- दिव्गु समास
- निधड़क :- अव्ययी भाव समास
- धीरे – धीरे :- अव्ययी भाव समास
- बराबर :- अव्ययी भाव समास
- आशातीत :- तत्पुरूष समास
- कपड़छन :- तत्पुरूष समास
- कामचोर :- तत्पुरूष समास
- आपबीती :- तत्पुरूष समास
- वशीकरण :- तत्पुरूष समास
- भलामानस :- कर्मधारय समास
- अधमरा :- कर्मधारय समास
- इकतीस :- दव्न्ध्द समास
- कपड़ेलत्ते :- दव्न्ध्द समास
- राजारानी :- दव्न्ध्द समास
- त्रिभुवन :- दिव्गु समास
- पंचाग्नि :- दिव्गु समास
- दुक्षती :- दिव्गु समास